क्या है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ? इसके उपयोग, चुनौतियां और संभावनाएं ; Artificial Intelligence in Hindi

क्या है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

 ? इसके उपयोग, चुनौतियां और संभावनाएं

 

 परिचय:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारे समय की सबसे  प्रभावशाली तकनीकों में से है, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। मानव बुद्धि का अनुकरण करने, डेटा से सीखने और स्वतंत्र निर्णय लेने की अपनी क्षमता के साथ, एआई उद्योगों में क्रांति ला रहा है। हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित कर रहा है और भविष्य के लिए नई संभावनाएं खोल रहा है। 

 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट या फिर इंसानों की तरह इंटेलिजेंट तरीके से सोचने वाला सॉफ़्टवेयर बनाने का एक तरीका है जो मानव बुद्धि की नकल करने के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग करता है। सीरी, एलेक्सा, टेस्ला कार और डिजिटल एप्लिकेशन जैसे नेटफ्लिक्स और अमेज़ॅन एआई टेक्नोलॉजी के कुछ बेहतरीन उदाहरण हैं।

 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर सिस्टम के विकास को दर्शाता है, जो ऐसे कार्यों को करने में सक्षम है जिनके लिए आमतौर पर मानव बुद्धि की आवश्यकता होती है।  इन कार्यों में प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (natural language processing) समस्या-समाधान (problem solving), निर्णय लेने (decision making) यहां तक कि रचनात्मकता (creativity) भी शामिल है।  एआई सिस्टम को बड़ी मात्रा में डेटा को प्रोसेस करने, पैटर्न को पहचानने और प्राप्त ज्ञान के आधार पर भविष्यवाणी या निर्णय लेने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

 

 

 

 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इतिहास:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की शुरुआत 1950 के दशक में ही हो गई थी, जिसका आधार था- आर्टिफिशियल न्यूरॉन। आर्टिफिशियल न्यूरॉन्स का मॉडल पहली बार 1943 में वारेन मैककुलोच और वॉल्टर पिट्स द्वारा सामने लाया गया था। सात वर्षों के बाद 1950 में एलन ट्यूरिंग द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संबंधित एक शोध पत्र प्रकाशित किया गया, जिसका शीर्षक था- ‘कंप्यूटर मशीनरी एंड इंटेलिजेंस’। ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ शब्द पहली बार 1956 में जॉन मैकार्थी द्वारा गढ़ा गया था, जिन्हें father of artificial intelligence के रूप में जाना जाता है।

 

लेकिन इसको 1970 के दशक में पहचान मिली। जापान ने सबसे पहले पहल की और 1981 में फिफ्थ जनरेशन नामक योजना की शुरुआत की थी। इसमें सुपर-कंप्यूटर के विकास के लिये 10-वर्षीय कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी। बाद में ब्रिटेन ने इसके लिए ‘एल्वी’ नाम का एक प्रोजेक्ट बनाया। यूरोपीय संघ के देशों ने भी ‘एस्प्रिट’ नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत की थी।

 

भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस:

भारत में सबसे पहले नीति आयोग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए इस राष्ट्रीय रणनीति की घोषणा वर्ष 2018 में की थी। इसके लिए नीति आयोग ने केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ मिलकर ‘सामाजिक सशक्तीकरण के लिये ज़िम्मेदार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस 2020’ (RAISE 2020) नामक एक मेगा वर्चुअल समिट का आयोजन किया था। इसका उद्देश्य भारत में सामाजिक सशक्तिकरण सुनिश्चित करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी के उपयोग को अधिक से अधिक बढ़ावा देना था और इस क्षेत्र में विभिन्न उपाय खोजना था।

 

इसके अलावा, भारत सरकार ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मिलकर एक ‘यूएस इंडिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पहल’ (USIAI) का शुभारंभ किया है। इसी के तहत ‘रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन’ (DRDO) द्वारा एक ‘दक्ष’ (Daksh) और ‘सर्प’ नामक रोबोट्स तैयार किये गये हैं। इसके अलावा ‘इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन’ (IRCTC) लिमिटेड ने एक ‘आस्कदिशा’ (ASKDISHA) नामक चैटबॉट का विकास भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग के तौर पर किया है।

 

 

 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रकार: 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मुख्य रूप से 4 प्रकार के हैं..

 

1.प्रतिक्रियाशील मशीनें (reactive machines)-

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सबसे बुनियादी रूप है, जो मशीन में प्रोग्राम किए गए सिंपलीफाइड आउटपुट के साथ एक इनपुट पर प्रतिक्रिया करती हैं।  एआई के इस पहले चरण के दौरान मशीनें इनपुट को स्टोर नहीं करती हैं और इसलिए, वर्तमान निर्णयों लेने के लिए पिछले निर्णयों का उपयोग नहीं कर सकती हैं।

 

2.सीमित स्मृति(Limited memory)-

सीमित मेमोरी ने मशीन लर्निंग कंप्यूटिंग की जटिलता और क्षमताओं का और विस्तार किया।  आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का यह रूप पिछले डेटा को स्टोर करने और भविष्य के लिए सटीक भविष्यवाणी करने के लिए इसका उपयोग करने की अवधारणा को समझता है। सीमित मेमोरी प्रोग्राम को आम तौर पर मनुष्यों द्वारा पहले किए गए कार्यों को फिर से करने के लिए अपने अनुभव का इस्तेमाल करने के रूप में समझा जा सकता है, जैसे कि कार चलाना।

 

3.मस्तिष्क का सिद्धांत (theory of mind)-

थ्योरी ऑफ़ माइंड एआई सिस्टम पर अभी भी कंप्यूटर वैज्ञानिकों द्वारा रिसर्चेज किए जा रहे हैं।  इस सिद्धांत की सामान्य अवधारणा यह है कि एक एआई प्रणाली वास्तविक समय में उस मानव इकाई की भावनाओं और मानसिक विशेषताओं पर प्रतिक्रिया करने में सक्षम होगी जिसका वह सामना करता है।  वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि एआई अलग-अलग इंसानों की भावनाओं, विश्वासों, सोच और जरूरतों को समझकर इन कार्यों को पूरा कर सकता है।

 

4.आत्म जागरुकता (self awareness)-

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास का अंतिम चरण तब होता है जब मशीन में आत्म-जागरूक बनने और अपनी पहचान बनाने की क्षमता होती है।  एआई का यह रूप आज तो संभव नहीं है, लेकिन दशकों से साइंस फिक्शन मीडिया में इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है। टर्मिनेटर मूवी इसका एक अच्छा उदाहरण है। 

 


आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अनुप्रयोग:

 

मार्केटिंग:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मार्केटर्स को सही समय पर जानकारी देने में सक्षम बनाकर उपभोक्ताओं और संभावित ग्राहकों के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है। जिससे मार्केटर्स सही स्ट्रेटजी बना सकते हैं। 

 

कृषि:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का उपयोग पौधों, कीटों और खराब पौधों के पोषण में बीमारियों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। AI की मदद से किसान मौसम की स्थिति, तापमान, पानी के उपयोग और मिट्टी की स्थिति का विश्लेषण कर सकते हैं और फसल की प्रोडक्टिविटी बढ़ा सकते हैं।

 

हेल्थकेयर:

एआई तेजी से और अधिक सटीक निदान (diagnosis) करके, संभावित ड्रग इंटरैक्शन की पहचान करके और उपचार के परिणाम  की भविष्यवाणी करके स्वास्थ्य सेवा में क्रांति ला रहा है।  एआई-पावर्ड मेडिकल इमेजिंग सिस्टम, एक्स-रे (x-ray) एमआरआई (MRI) और सीटी स्कैन (CT scan) में उच्च परिशुद्धता के साथ बीमारी का पता लगा सकते हैं जो उपचार की योजना बनाने में सहायता करते हैं।

 

 स्वायत्त वाहन (autonomous vehicles):

सेल्फ ड्राइविंग कार जो कि परिवहन क्षेत्र में एक रोमांचक विकास है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर बहुत अधिक निर्भर करता है। ये वाहन सड़कों पर नेविगेट करने, ट्रैफ़िक सिगनल्स की व्याख्या करने और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अलग-अलग निर्णय लेने के लिए एल्गोरिदम, सेंसर तकनीकों और मशीन लर्निंग का उपयोग करते हैं। इससे सड़क दुर्घटनाओं पर नियंत्रण किया जा सकता है।

 

 वित्त (finance):

एआई वित्तीय उद्योग को फिर से आकार दे रहा है, धोखाधड़ी का पता लगाने, जोखिम मूल्यांकन और एल्गोरिदम व्यापार में सुधार कर रहा है।  एआई-संचालित चैटबॉट और वर्चुअल असिस्टेंट भी व्यक्तिगत सुविधाएं प्रदान करके ग्राहक संतुष्टि को बढ़ाते हैं।

 

 शिक्षा (education):

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने सीखने के लिए संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। इंटेलिजेंट ट्यूटरिंग सिस्टम हर व्यक्ति की जरूरत और इच्छा के मुताबिक पर्सनलाइजर शेड्यूल के माध्यम से सीखना आसान बना रहा है। इससे प्रोग्रेस को ट्रैक करना भी आसान होता है जिससे फीडबैक लेकर वांछित परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। 

 

 साइबर सुरक्षा (cyber security):

जैसे-जैसे साइबर खतरे तेजी से बढ़ते जा रहे हैं, एआई साइबर हमलों की पहचान करने और उन्हें रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।  मशीन लर्निंग, एल्गोरिदम पैटर्न और विसंगतियों का पता लगाने के लिए बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण कर सकता है, जिससे साइबर सिक्योरिटी को और मजबूत किया जा सकता है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़ी चुनौतियां:

जबकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की क्षमता बहुत अधिक है, यह महत्वपूर्ण है कि उत्पन्न होने वाले नैतिक खतरों और चुनौतियों के बारे में पहले से ही सचेत हुआ जाए। भारत जैसे देशों में जहां बेरोजगारी, फेक न्यूज़, डाटा प्राइवेसी जैसी चुनौतियां पहले से ही मौजूद हैं, वहां एआई के इस पर पड़ने वाले असर को लेकर पहले से तैयारी करना और ज़रूरी हो जाता है।

भारत में जहां आबादी की मीडियन एज 29 साल है, वहां अधिक से अधिक युवाओं रोजगार देना देश के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। फोर्ब्स के दुनिया भर में एक करोड़ लोगों पर किए गए सर्वे के अनुसार यह निष्कर्ष निकला है कि एआई 25% जॉब पर नकारात्मक रूप से असर डालने वाला है। हालांकि Artificial intelligence टेक्नोलॉजी के विकास से नई स्किल्स वाली बहुत सारी नई जॉब्स भी क्रिएट होंगी  लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि पहले से ही इसकी तैयारी कर ली जाए। 

 

नैसकॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार इंडिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस स्किल्स के मामले में पहले पायदान पर है इसे एआई का पॉवर हाउस भी कहा जाता है। ऐसे में इस से रिलेटेड स्किल्स पर बेहतर काम कर युवाओं को स्किल्ड बनाकर इसके लिए नई संभावनाओं के द्वार खोले जा सकते हैं। साथ ही डीपफेक, फ़ेक न्यूज़, एआई फोटोशॉप के माध्यम से जो नेगेटिव नैरेटिव सेट किए जा रहे हैं, उन पर सही तरीके से नियंत्रण सुनिश्चित किया जाए।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस युक्त मशीनों से जितने फायदे हैं, उतने ही खतरे भी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सोचने-समझने वाले रोबोट अगर किसी कारण या परिस्थिति में मनुष्य को अपना दुश्मन मानने लगें, तो मानवता के लिये खतरा पैदा हो सकता है। समाज के लाभ के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए तकनीकी प्रगति और नैतिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है।

 

© प्रीति खरवार

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